Menu

मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

header photo

आँकड़ों पर रार..., पब्लिक बेरोजगार ! (व्यंग्य)

आजकल जिसे देखो जनता को रोजगार देने के लिए दुखी हुआ पड़ा है। खुद भले नौकरीशुदा हो, लेकिन बेरोजगारों की चिंता उसे खाये जा रही है। चिंता करना भी आजकल फैशन हो गया है। और यह फैशन चुनावों के समय कुछ ज्यादा ही महामारी का रूप ले लेता है। नेता लोग, जनता की तरह-तरह की चिंताओं में खुद को डुबो लेते है। किसी को जनता के लिए महँगाई की चिंता हो जाती है, किसी को बेरोजगारी की। किसी को शिक्षा की चिंता हो जाती है, तो किसी को स्वास्थ्य की। चुनावों में नेताओं को, जनता की इतनी चिंता हो जाती है, कि खुद जनता भी चिंता में पड़ जाती है कि आखिर नेताओं को हो क्या गया है।

नेताओं के लिए बेरोजगारी सदाबहार मुद्दा है, तो जनता के लिए सदाबहार समस्या। बेरोजगारी का तो आजकल ये हाल है कि सरकार का, बेरोजगारी का आंकड़ा इकट्ठा करने वाला विभाग ही बेरोजगार हो गया है। पीएम साहब सभाओं में कहते हैं कि, रोजगार तो खूब है, पर उसके आँकड़े नहीं हैं। अब आँकड़े क्यों नहीं हैं, पूंछने पर कहेंगे कि, आँकड़े इकट्ठा करने वाले विभाग के पास इतने काम हैं कि उसे बेरोजगारी के आँकड़े इकट्ठे करने का समय ही नहीं मिलता। फिर भी लोग कहें कि बेरोजगारी है, तो कोई क्या करे।

इधर एक पत्रकार ने सरकार के बेरोजगारी के आँकड़े लीक करके बताया कि बेरोजगारी 45 साल के रिकार्ड को तोड़ रही है। अब इनको कौन समझाये कि ‘मजबूत’ सरकार होने के यही तो फायदे होते हैं कि सरकार हर रिकार्ड को तोड़ सकती है। देश को एक नए आयाम तक ले जा सकती है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानी भुंखमरी दूर करने में मजबूत सरकार 5 साल में 55 से गिरकर 103 पर जाकर रिकार्ड बनाई। रुपये ने गिरने का रिकार्ड बनाया, तो पेट्रोल ने उठने का रिकार्ड बनाया। महिला असुरक्षा में भी चौथे स्थान से आज, अफगानिस्तान –सीरिया को पछाड़ते हुये नंबर एक होने का रिकार्ड बना चुके। तो अगर बेरोजगारी में रिकार्ड बन गया तो क्या हो गया?

 भाइयों-बहनों, क्या रिकार्ड बनाना गुनाह है? रिकार्ड बनना चईए, कि नई बनना चईए? ये माँ-बेटे के सपोर्टर, 70 साल से देश को रिकार्ड बनाने से रोक रहे थे। लेकिन हमारी मजबूत सरकार ने रिकार्ड पे रिकार्ड बनाया। विपक्ष में जिन -जिन बातों का विरोध करते थे, सरकार में आते ही उन सब पर पलटी मारने का रिकार्ड बनाया हमने। चाहे वो आधार हो या जीएसटी। हमने जुमले बोलने का रिकार्ड बनाया। और सबसे बड़ी बात कि आप जनता ने भी जुमले सुनने का रिकार्ड बनाया..... साsरी ! ये मैं क्या बोल रहा हूँ। ये तो मुझमें किसी नेता की आत्मा घुस गयी थी। बात तो बेरोजगारी की हो रही थी।

हाँ, तो कौन कहता है कि देश में बेरोजगारी है? पीएम ने खुद जियो का विज्ञापन करके सबको सस्ता डाटा दिलाया, जिससे की आज हर हाथ को काम मिला हुआ है। 4जी स्पीड से लोग मोबाइल के साथ-साथ, एक-दूसरे को भी ऊंगली कर रहे हैं। अब खाली कौन बैठा है? जो बेरोजगार–बेरोजगार की बीन बजा रखी है देशद्रोहियों ने। देश का हर आम आदमी से लेकर नेता अफसर तक ब्यस्त हैं। बेरोजगार कौन है?

पढ़ा-लिखा आदमी, रोजगार ढूँढने में इतना बिजी है, कि रोजगार ढूँढना ही रोजगार हो गया है। खेतिहर किसान-मजदूर, लोन लेकर, सल्फ़ास खाने या फाँसी लगाकर आत्महत्या करने में बिजी हैं। फसलों के उचित दाम के लिए धरना प्रदर्शन करने में ब्यस्त हैं। जो कम पढे-लिखे नौजवान हैं वो मंदिर बनाने की कारसेवा में लगे हैं, कांवड़ उठाने में ब्यस्त हैं। जो बच गए वो गौरक्षा में, फलां वाहिनियों में या ढिमका दलों में, जयकारे लगा रहे हैं। जो अनपढ़, बूढ़े- बेगार बैठे थे, वो विभिन्न पार्टियों की रैलियों में सौ –दो सौ कमा रहे हैं। सिर्फ इन्हीं के लिए हमारे प्रधान सेवक जी, सौ-सौ, दो-दो सौ रैलियाँ हर साल करते हैं। जिससे कि कम से कम मनरेगा की तरह, सौ दिन का तो रोजगार मिले। फिर भी कृतघ्न लोग एहसान मानने की बजाए, बेरोजगारी-बेरोजगारी का भोंपू बजा रहे हैं।

अफसर लोग एक दूसरे पर घूस लेने का आरोप लगाकर, एक दूसरे का भ्रष्टाचार उजागर करके, एक-दूसरे का वर्मा-अस्थाना करने में ब्यस्त हैं। मिडियावाले खबरें दबाने और फेक न्यूज चलाने में बिजी हैं। पत्रकार, जनता के मुद्दे दबाने और सर्वे करने में लगे हैं। अदालतें, मामले लटकाने और प्रेस वार्ताएं करने में बिजी हैं। चुनाव आयोग, ईवीएम की इज्जत बचाने में ब्यस्त है। कोई बेरोजगार नहीं बैठा है, फिर भी ये पाकिस्तानी लोग आ गए सरकार के पास बेरोजगारी का रोना रोने। सरकार से पूंछ रहे हैं कि हर साल दो करोड़ रोजगार के वादे का क्या हुआ?

इन देश द्रोहियों को इतना भी समझ नहीं आती, कि अकेली सरकार क्या-क्या करे? समस्याओं पर समस्याएँ हैं। पाकिस्तान है, कश्मीर है, चीन है, बांग्लादेशी हैं, रोहिङ्ग्या हैं। सरकार किससे-किससे निपटे। वो गौ रक्षा करे कि नौकरी ढूँढे? मंदिर बनाए कि वैकेन्सियां निकाले? लानत है एसे बेरोजगारों को जो उड़ी जैसी फिल्म में सर्जिकल स्ट्राइक देखकर भी, पाकिस्तान से वर्ल्डवार की चिंता के बजाए, अपने घरवार की चिंता में मरे जा रहे हैं। इधर सरकार एक से बड़ी एक समस्याओं से पंजा लड़ा रही है, और ये आ गए कमीज उठाए अपना पिचका पेट दिखाने। रोजगार माँगने। कहाँ तो सरकार, मध्यप्रदेश और कर्नाटक में राज्य की सरकारें गिराने- बनाने में लगी है, कहाँ ये मुँह उठाए आ गए रोजगार माँगने। गाय-गोबर पे लड़ने का इतना काम दिया हुआ है सरकार ने, फिर भी बेरोजगार! दंगे करना, लिंचिंग करना क्या काम नहीं है? कुछ नहीं तो बेरोजगारी की बहस में ही लग जाओ। उसी में ब्यस्त हो जाओगे। काम मांग रहे हो, काम ढूंढ रहे हो, ये भी तो एक काम है, वो भी सत्तर सालों से, परमानेंट!

Go Back



Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

450;460;eca37ff7fb507eafa52fb286f59e7d6d6571f0d3450;460;7329d62233309fc3aa69876055d016685139605c450;460;1b829655f614f3477e3f1b31d4a0a0aeda9b60a7450;460;9cbd98aa6de746078e88d5e1f5710e9869c4f0bc450;460;69ba214dba0ee05d3bb3456eb511fab4d459f801450;460;0d7f35b92071fc21458352ab08d55de5746531f9450;460;946fecccc8f6992688f7ecf7f97ebcd21f308afc450;460;f702a57987d2703f36c19337ab5d4f85ef669a6c450;460;dc09453adaf94a231d63b53fb595663f60a40ea6450;460;427a1b1844a446301fe570378039629456569db9450;460;6b3b0d2a9b5fdc3dc08dcf3057128cb798e69dd9450;460;7bdba1a6e54914e7e1367fd58ca4511352dab279450;460;d0002352e5af17f6e01cfc5b63b0b085d8a9e723450;460;f8dbb37cec00a202ae0f7f571f35ee212e845e39450;460;cb4ea59cca920f73886f27e5f6175cf9099a8659450;460;fe332a72b1b6977a1e793512705a1d337811f0c7450;460;60c0dbc42c3bec9a638f951c8b795ffc0751cdee

आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

400;300;648f666101a94dd4057f6b9c2cc541ed97332522400;300;497979c34e6e587ab99385ca9cf6cc311a53cc6e400;300;24c4d8558cd94d03734545f87d500c512f329073400;300;6b9380849fddc342a3b6be1fc75c7ea87e70ea9f400;300;dde2b52176792910e721f57b8e591681b8dd101a400;300;133bb24e79b4b81eeb95f92bf6503e9b68480b88400;300;40d26eaafe9937571f047278318f3d3abc98cce2400;300;dc90fda853774a1078bdf9b9cc5acb3002b00b19400;300;e1f4d813d5b5b2b122c6c08783ca4b8b4a49a1e4400;300;f7d05233306fc9ec810110bfd384a56e64403d8f400;300;76eff75110dd63ce2d071018413764ac842f3c93400;300;2d1ad46358ec851ac5c13263d45334f2c76923c0400;300;b158a94d9e8f801bff569c4a7a1d3b3780508c31400;300;f5c091ea51a300c0594499562b18105e6b737f54400;300;ba0700cddc4b8a14d184453c7732b73120a342c5400;300;a5615f32ff9790f710137288b2ecfa58bb81b24d400;300;08d655d00a587a537d54bb0a9e2098d214f26bec400;300;0db3fec3b149a152235839f92ef26bcfdbb196b5400;300;611444ac8359695252891aff0a15880f30674cdc400;300;aa17d6c24a648a9e67eb529ec2d6ab271861495b400;300;f4a4682e1e6fd79a0a4bdc32e1d04159aee78dc9400;300;9180d9868e8d7a988e597dcbea11eec0abb2732c400;300;bbefc5f3241c3f4c0d7a468c054be9bcc459e09d400;300;e167fe8aece699e7f9bb586dc0d0cd5a2ab84bd9400;300;7b8b984761538dd807ae811b0c61e7c43c22a972400;300;321ade6d671a1748ed90a839b2c62a0d5ad08de6400;300;b6bcafa52974df5162d990b0e6640717e0790a1e400;300;02765181d08ca099f0a189308d9dd3245847f57b400;300;52a31b38c18fc9c4867f72e99680cda0d3c90ba1400;300;3c1b21d93f57e01da4b4020cf0c75b0814dcbc6d400;300;0fcac718c6f87a4300f9be0d65200aa3014f0598400;300;7a24b22749de7da3bb9e595a1e17db4b356a99cc

हमसे संपर्क करें

visitor

896194

चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

400;300;6600ea27875c26a4e5a17b3943eefb92cabfdfc2400;300;acc334b58ce5ddbe27892e1ea5a56e2e1cf3fd7b400;300;639c67cfe256021f3b8ed1f1ce292980cd5c4dfb400;300;1c995df2006941885bfadf3498bb6672e5c16bbf400;300;f79fd0037dbf643e9418eb6109922fe322768647400;300;d94f122e139211ea9777f323929d9154ad48c8b1400;300;4020022abb2db86100d4eeadf90049249a81a2c0400;300;f9da0526e6526f55f6322b887a05734d74b18e66400;300;9af69a9bc5663ccf5665c289fc1f52ae6c1881f7400;300;e951b2db2cbcafdda64998d2d48d677073c32c28400;300;903118351f39b8f9b420f4e9efdba1cf211f99cf400;300;5c086d13c923ec8206b0950f70ab117fd631768d400;300;71dca355906561389c796eae4e8dd109c6c5df29400;300;b0db18a4f224095594a4d66be34aeaadfca9afb3400;300;dfec8cfba79fdc98dc30515e00493e623ab5ae6e400;300;31f9ea6b78bdf1642617fe95864526994533bbd2400;300;55289cdf9d7779f36c0e87492c4e0747c66f83f0400;300;d2e4b73d6d65367f0b0c76ca40b4bb7d2134c567

अन्यत्र

आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...