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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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मुद्दे हजार, वोटर लाचार (व्यंग्य)

इधर चुनाव का ऐलान हुआ, उधर जनता का भाव बेमौसम की सब्जियों की तरह आसमान पर जा पहुँचा। पाँच साल से नौकर से भी बदतर जीवन जीने को मजबूर जनता, अचानक अपने को अदानी-अंबानी की तरह मालिक समझने लगी है। पाँच साल से बिजली पानी को तरसती जनता, नेताओं को एक एक वोट के लिए तरसाना चाहती है। नेता भी पाँच हफ्ते, अपने को जनता का सबसे बड़ा सेवक सिद्ध करने की होड़ में हैं। उन्हें पता है कि पाँच हफ्ते जनता के, बाकी पाँच साल तो उनके ही हैं। पब्लिक को भी पता है कि पाँच साल में उनके हिस्से सिर्फ पाँच हफ्ते ही है।

चुनाव के एलान के साथ ही ललुआ- कलुआ, मंगरू –घुरहू सभी खुशी के मारे पगलाये जा रहे थे। आखिर पाँच साल से इसी दिन का इन्तजार जो कर रहे थे। बिजली, पानी, सड़क, कानून ब्यवस्था, महिला सुरक्षा, अवैध कालोनी, विकास, महँगाई और भ्रष्टाचार आदि से परेशान ये सब सोच रहे थे कि अबकी तो इन मुद्दों को हल करने का वादा जरूर ले लेंगे नेताओं से। वैसे भी शादी के लिये घोड़ी की, कील के लिये हथोड़ी की, टिकट के लिये सिफारिश की, फसल के लिये बारिश की, रज़ाई के साथ गद्दे की जितनी जरूरत होती है, उतनी ही जरूरत चुनाव जीतने के लिये,  मुद्दे की होती है।

चुनाव के पहले हफ्ते में सभी नेताओं ने बड़े ज़ोर शोर से इन बिजली, पानी, सड़क, विकास, महँगाई और भ्रष्टाचार आदि के मुद्दों को उठाया भी। जनसेवक जी ने अपने क्षेत्र को शंघाई बनाने का वादा करना शुरू किया तो देशभक्त जी ने क्षेत्र को अमेरिका और इंग्लैण्ड बनाने का दावा करना शुरू किया।

गोबरी, लौटू, पांचू, निरहू आदि सबकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। खुशी के मारे हवा में उड़ने लगे। उनको सपने में चमचमाती सड़कें, चौबीस घण्टे झटके मारने वाली बिजली और डूब मरने भर का पानी, सपनों में दिखने लगा। दूसरे हफ्ते में घुरहू – पतवारू को और खुश करते हुये सभी नेता, महँगाई को कम करने की कसम खाने लगे। सबको सपने में हलवा-पूरी दिखाने लगे वो भी फ्री में।

तीसरा हप्ता आते आते देश से भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने की कसमें सभी उम्मीदवार खाने लगे। जनता को नेताओं में गांधी जी की आत्मा के घुसने की शंका होने लगी। जनता की सेवा की एसी-एसी कसमें खायी जाने लगीं, कि जनता को इस बात की आत्मग्लानि होने लगी कि उन्होनें पाँच साल तक बेचारे समाज सेवक नेताओं को बिना वजह गालियाँ दी।

चौथा हप्ता शुरू होते होते सब कुछ फ्री होने लगा। बिजली फ्री। पानी फ्री। वाई-फाई फ्री। मकान फ्री। लैपटाप फ्री। साइकिल फ्री। टीवी फ्री। खाना फ्री। गोबरी, लौटू, पांचू, निरहू, घुरहू, पतवारू सबको लगने लगा कि रामराज्य बस अब आया कि तब आया। कितने तो खुशी से हार्ट फेल होते होते बचे।

लेकिन चौथा हप्ता खतम होते होते और चुनाव का आखिरी हप्ता शुरू होते होते, सभी नेताओं ने एक से बढ़कर एक खोज करना शुरू कर दिया। एक ने खोज करके ये पता लगा लिया कि आखिर महँगाई क्यों बढ़ी? पहले नेता ने खुलासा किया कि दूसरे नेता के लोगों ने जमाखोरी की है, इसलिए महँगाई बढ़ी।

दूसरे नेता ने भी खुलासा किया कि पहले वाले नेता की किसान विरोधी नीतियों के कारण महँगाई बढ़ी। जनता को पूर्ण विश्वास हो गया कि अब तो महँगाई डायन मरी ही मरी। तभी तीसरे नेता ने रिसर्च करके पता लगाया कि चौथे वाले नेता ने इतना भ्रष्टाचार किया है। चौथे वाले ने भी इस बात पर पीएचडी कर लिया कि तीसरे वाले ने कब कब और कहाँ कहाँ भ्रष्टाचार किया है।

इसके बाद एक से बढ़कर एक रिसर्च हर घण्टे और हर दिन आने लगे। किसने कहाँ भ्रष्टाचार किया है। किसकी कहाँ सीडी बनी है, किसकी किसके साथ सीडी बनी है। किसने ब्लैकमनी इकट्ठा किया था। किसने कब कब कहाँ कहाँ दंगे करवाए थे। जो बातें बड़ी बड़ी एसआईटी और कमीशन सालों तक, करोड़ों खर्च करके भी पता ना लगा पाये थे, उन सब का खुलासा धड़ाधड़ होने लगे। किस नेता का सूट कितने लाख का है, किस नेता के सूट पर कितने धब्बे हैं, इस पर ज़ोर-शोर से चर्चा होने लगी। कौन कम भ्रष्ट है, कौन ज्यादा? इस पर बहसें होने लगीं।

जनता अवाक होकर नेताओं के एक-दूसरे के बारे में की गयी नित नई खोजों और आरोपों पर हो रही नूरा-कुश्ती को चटखारे ले-लेकर देखने में मस्त हो गयी। नेताओं द्वारा एक-दूसरे पर फेंके गए कीचड़ों में जनता इतना खो गयी, कि उसे बिजली, पानी, सड़क, विकास, महँगाई और भ्रष्टाचार सब भूल ही गए। और नेताओं द्वारा फेंके गए मुद्दे के कीचड़ों में सनी, ज्यादा साफ कमीज वाले नेता को वोट दे आयी।

सभी सयानों में इस बात पर भले ही मतभेद है कि, चुनाव मुद्दे पैदा करते हैं? या मुद्दे, चुनाव पैदा करते हैं। लेकिन नेता इतने सयाने हो गए हैं कि हर चुनाव में अपनी पसंद के मुद्दे पैदा कर ही देते हैं। अगले चुनाव के लिए नए मुद्दों पर शोध जारी है। जनता के लिए समस्याये, मुद्दा हैं। नेताओं के लिए मुद्दे ढूँढना समस्या है। मुद्दे के बिना, बेकार अनशन और उपवास है। इसलिए हर पार्टी को एक चुनाव जिताऊ मुद्दे की तलाश है।

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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