Menu

मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

header photo

लोग मरते रहे ....

लोग मरते रहे, छटपटाते रहे।
अपने-अपने मसीहा, बुलाते रहे।

वक्त ही ना मिला, उन मसीहाओं को,
और दरिंदे तो, लाशें बिछाते रहे।

ना पुलिस ने किया काम, ना कोर्ट ने,
लोग दंगों में जानें, गंवाते रहे।

धर्म की खाल में, जो छुपे जानवर,
मौका पाते ही बाहर, वो आते रहे।

मारकर एक-दूजे को, हमवतनों को
अपने अपने धरम, सब बचाते रहे।

पहले रोका नहीं, दंगे होने दिया,
बाद में बस, कमीशन बिठाते रहे।

भोले भालों को, दंगाई- वहशी बना,
वो फसल वोटों की, लहलहाते रहे।

जिसको सबने चुना, था मसीहा नया,
मौत पे, वो भी बस, मुस्कुराते रहे।

झूठे दावों, बयानों, कुकर्मों से सब,
दाग़ चेहरे के अपने, छुपाते रहे।

पास आया न कोई, तसल्ली ना दी,
घर में बैठे सभी, दुःख जताते रहे।

मांग लें रोजी रोटी, ना सरकार से,
गाय, मंदिर औ मस्जिद, दिखाते रहे।

जिसको समझे दवा, लोग हरदर्द की,
दर्द भी, रोग भी, वो बढ़ाते रहे।

इसकी गलती रही, उसकी गलती रही,
एक-दूजे पे इल्जाम, लगाते रहे।

लोग मरते रहे, भूंख- बेगारी से,
सत्ता में तो सभी, आते जाते रहे।

“जानी” मुद्दों पे, लड़ना जिन्हें चाहिए,
धर्म के नाम पर, जाँ गंवाते रहे।

भ्रष्ट सिस्टम की सब, चोट खाते रहे।
लोग मरते रहे, छटपटाते रहे।

Go Back



Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

450;460;427a1b1844a446301fe570378039629456569db9450;460;d0002352e5af17f6e01cfc5b63b0b085d8a9e723450;460;69ba214dba0ee05d3bb3456eb511fab4d459f801450;460;f8dbb37cec00a202ae0f7f571f35ee212e845e39450;460;1b829655f614f3477e3f1b31d4a0a0aeda9b60a7450;460;0d7f35b92071fc21458352ab08d55de5746531f9450;460;9cbd98aa6de746078e88d5e1f5710e9869c4f0bc450;460;eca37ff7fb507eafa52fb286f59e7d6d6571f0d3450;460;60c0dbc42c3bec9a638f951c8b795ffc0751cdee450;460;f702a57987d2703f36c19337ab5d4f85ef669a6c450;460;cb4ea59cca920f73886f27e5f6175cf9099a8659450;460;7329d62233309fc3aa69876055d016685139605c450;460;946fecccc8f6992688f7ecf7f97ebcd21f308afc450;460;dc09453adaf94a231d63b53fb595663f60a40ea6450;460;fe332a72b1b6977a1e793512705a1d337811f0c7450;460;7bdba1a6e54914e7e1367fd58ca4511352dab279450;460;6b3b0d2a9b5fdc3dc08dcf3057128cb798e69dd9

आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

400;300;52a31b38c18fc9c4867f72e99680cda0d3c90ba1400;300;b158a94d9e8f801bff569c4a7a1d3b3780508c31400;300;0db3fec3b149a152235839f92ef26bcfdbb196b5400;300;f4a4682e1e6fd79a0a4bdc32e1d04159aee78dc9400;300;a5615f32ff9790f710137288b2ecfa58bb81b24d400;300;321ade6d671a1748ed90a839b2c62a0d5ad08de6400;300;40d26eaafe9937571f047278318f3d3abc98cce2400;300;611444ac8359695252891aff0a15880f30674cdc400;300;648f666101a94dd4057f6b9c2cc541ed97332522400;300;133bb24e79b4b81eeb95f92bf6503e9b68480b88400;300;76eff75110dd63ce2d071018413764ac842f3c93400;300;ba0700cddc4b8a14d184453c7732b73120a342c5400;300;02765181d08ca099f0a189308d9dd3245847f57b400;300;aa17d6c24a648a9e67eb529ec2d6ab271861495b400;300;b6bcafa52974df5162d990b0e6640717e0790a1e400;300;f5c091ea51a300c0594499562b18105e6b737f54400;300;497979c34e6e587ab99385ca9cf6cc311a53cc6e400;300;e167fe8aece699e7f9bb586dc0d0cd5a2ab84bd9400;300;bbefc5f3241c3f4c0d7a468c054be9bcc459e09d400;300;6b9380849fddc342a3b6be1fc75c7ea87e70ea9f400;300;7b8b984761538dd807ae811b0c61e7c43c22a972400;300;08d655d00a587a537d54bb0a9e2098d214f26bec400;300;dde2b52176792910e721f57b8e591681b8dd101a400;300;e1f4d813d5b5b2b122c6c08783ca4b8b4a49a1e4400;300;9180d9868e8d7a988e597dcbea11eec0abb2732c400;300;0fcac718c6f87a4300f9be0d65200aa3014f0598400;300;24c4d8558cd94d03734545f87d500c512f329073400;300;f7d05233306fc9ec810110bfd384a56e64403d8f400;300;2d1ad46358ec851ac5c13263d45334f2c76923c0400;300;3c1b21d93f57e01da4b4020cf0c75b0814dcbc6d400;300;7a24b22749de7da3bb9e595a1e17db4b356a99cc400;300;dc90fda853774a1078bdf9b9cc5acb3002b00b19

हमसे संपर्क करें

visitor

891629

चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

400;300;6600ea27875c26a4e5a17b3943eefb92cabfdfc2400;300;acc334b58ce5ddbe27892e1ea5a56e2e1cf3fd7b400;300;639c67cfe256021f3b8ed1f1ce292980cd5c4dfb400;300;1c995df2006941885bfadf3498bb6672e5c16bbf400;300;f79fd0037dbf643e9418eb6109922fe322768647400;300;d94f122e139211ea9777f323929d9154ad48c8b1400;300;4020022abb2db86100d4eeadf90049249a81a2c0400;300;f9da0526e6526f55f6322b887a05734d74b18e66400;300;9af69a9bc5663ccf5665c289fc1f52ae6c1881f7400;300;e951b2db2cbcafdda64998d2d48d677073c32c28400;300;903118351f39b8f9b420f4e9efdba1cf211f99cf400;300;5c086d13c923ec8206b0950f70ab117fd631768d400;300;71dca355906561389c796eae4e8dd109c6c5df29400;300;b0db18a4f224095594a4d66be34aeaadfca9afb3400;300;dfec8cfba79fdc98dc30515e00493e623ab5ae6e400;300;31f9ea6b78bdf1642617fe95864526994533bbd2400;300;55289cdf9d7779f36c0e87492c4e0747c66f83f0400;300;d2e4b73d6d65367f0b0c76ca40b4bb7d2134c567

अन्यत्र

आदरणीय  कुशवाहा जी प्रणाम। कमेन्ट के लिए धन्यवाद ।
मनोज जी, अत्यंत सुंदर व्यंग्य रचना। शायद सत्ताधारियों के लिए भी जनता अब केवल हंसी-मजाक विषय रह गई है. जब चाहो उसका मजाक उड़ाओ और उसी के नाम पर खाओ&...
कुछ न कुछ तो कहना ही पड़ेगा , जानी साहब. कब तक बहरे बन कर बैठे रहेंगे. कब तक अपने जज्बातों को मरते हुए देखेंगे. आखिर कब तक. देश के हालात को व्यक्त क...
स्नेही जानी जी , सादर ,बहुत सुन्दर भाव से पूर्ण कविता ,आज की सच्चाई को निरुपित करती हुई . सफल प्रस्तुति हेतु बधाई .
तरस रहे हैं जो खुद, मय के एक कतरे को, एसे शाकी हमें, आखिर शराब क्या देंगे? श्री मनोज कुमार जी , नमस्कार ! क्या बात है ! आपने आदरणीय डॉ . बाली से...