उनके वादों का कभी, हिसाब नहीं मिलता।
सवाल तो बहुत हैं, पर जबाब नहीं मिलता।
जो भी विपक्ष में हैं, बस वो ही भ्रष्टाचारी,
अपनों के भ्रष्टाचार का, हिसाब नहीं मिलता।
नफरत, विरोध, दंगा, सबकुछ यहाँ मिलेगा,
सियासियों के हाथ में, गुलाब नहीं मिलता।
धर्मों में लड़ाने को, भक्तों की बहुत माँग,
बेगार नौजवानों को, बस जाब नहीं मिलता।
दलितों की, मुसलमानों की, ‘लिंचिंग’ को माब है,
लड़ने को जुल्म-पाप से, तो माब नहीं मिलता।
जम्हूरियत ने झेले, आपातकाल, दंगे,
पर देश का यूँ ख़ाना,-खराब नहीं मिलता।
सब चूर हैं नशे में, हो जाति-धर्म-भाषा,
पीने को लहू, छूट है, शराब नहीं मिलता।
सरकार को कहो तो, आलोचना वतन की,
‘जानी’ मिलेंगे ‘ट्रोल’, बस जबाब नहीं मिलता।