हमारा देश विकास के आकाश में, गोते लगा रहा है। हर तरफ, बस विकास ही विकास नजर आ रहा है। अगर देश का विकास नहीं दिख रहा, तो नजर का विकास करिए, या फिर पाकिस्तान जाने का प्रयास करिए। आज विकास का वो जलवा है कि, अगर पुलिस, विकास को पकड़ने जाती है, तो पुलिस का एनकाउंटर हो जाता है। और अगर विकास, पुलिस की पकड़ में आ जाये, तो उसका भी काम तमाम हो जाता है।
देश के सारे विकास, आम आदमी को हमेशा उदास ही करते हैं। पार्टियाँ और सरकारें, अपने विकास के लिए हर दौर में अपने अपने हिसाब से विकास पैदा करते हैं, पालते पोषते हैं और फिर जनता पर छोड़ते हैं। चाहे वो विकास यादव हो, विकास तिवारी हो या फिर विकास दूबे। अब आप सोच रहे हैं कि विकास दूबे ने तो कानपुर में आठ पुलिस वालों का एनकाउंटर करके देश प्रदेश में अपराध का विकास किया था, पर ये विकास यादव और विकास तिवारी कौन हैं।
आखिर क्यों ना पूंछोगे? इसीलिए तो कहा गया है कि, पब्लिक मेमोरी इज वेरी शॉर्ट। मैं आपकी याददास्त का विकास करता हूँ। 2002 में नितीश कटारा नामक व्यवसायी, अपनी जाति से विकास करके भारती यादव से प्रेम करने लगा। इससे खफा होकर भारती के भाई विकास यादव ने जातीयता के मार्ग में अवरोध बन रहे, जाति का डिस-ऑनर कर रहे नितीश कटारा का ऑनर-किलिंग यानी हत्या कर दिया था। दूसरे थे विकास तिवारी। विकास तिवारी दो जून 2015 को हजारीबाग कोर्ट परिसर में गैंगस्टर सुशील श्रीवास्तव सहित तीन लोगों की हत्या कर किशोर पांडेय गिरोह का सरगना बन आपराधिक साम्राज्य का विकास किया। विकास दूबे तो आजकल छाया ही हुआ है। उसने पहले भी कई नेताओं की हत्या करके, अपराध के साथ-साथ राजनीति का भी खूब विकास किया था। विकास दूबे का विनाश करते करते यूपी पुलिस ने एनकाउंटरों का विकास कर लिया है।
इसीलिए तो कहते हैं कि देश के सारे विकास, आम आदमी को हमेशा उदास ही करते हैं। वैसे भी आम आदमी का क्या है। विकास दूबे ने किसी पुलिस वाले को मारा तो भी ताली बजाएंगे, पुलिस भी कानून-संविधान का एनकाउंटर करके विकास दूबे को गोली मारेगी तो भी ताली बजाएंगे। नेता भाषण दे तो भी ताली बजाएंगे, अभिनेता नाचे-कूदे तो भी ताली बजाकर चले आते हैं। जब ये सब मिलकर, इस आम आदमी की बजाते हैं, तब भी ये ताली ही बजाते हैं। क्योंकि पब्लिक ताली बजाने के लिए ही पैदा होती है। जैसे ताली बजाने वालों को भारतीय समाज में, हेय दृष्टि से देखा जाता है, एसे ही इस ताली बजाऊ आमआदमी को कोई नेता-अभिनेता-मंत्री-अफसर भाव नहीं देता। इन आमआदमियों से ज्यादा भाव तो आजकल आम का है। बल्कि आम आजकल इतने महंगे हो रहे हैं कि लोग आम-आदमी होना भी अफोर्ड नहीं कर पा रहे।
हाँ, तो बात हो रही थी विकास होने की। रोड के एक ओर ऊँचे-ऊँचे बड़े-बड़े मालों की संख्या में विकास हो रहा है तो दूसरी ओर हाथ में कटोरा पकड़े कंगालों की संख्या का भी विकास हो रहा है। सबसे ज्यादा विकास तो घोटालों का हुआ है। जमीन से शुरुआत करके आज आकाश से पाताल तक पहुँच चुके हैं। 1948 में जीप घोटाले से शुरू किए थे, बोफ़ोर्स, कामनवेल्थ (जमीन पर) से गुजरते हुये हेलीकाप्टर, राफेल (आकाश में) से होते हुये कोयला खदान घोटाला (पाताल) तक पहुँच गया है। सरकारों से घोटालों का विकास हुआ है तो आजकल घोटालों से भी सरकारों का विकास होने लगा है। पहले लाखों में घोटाला होता था, फिर करोड़ों में। अब महँगाई बढ़ गयी है तो अरबों-खरबों में घोटाले होने लगे हैं। हमें खुश होना चाहिए, आखिर देश विकास कर रहा है, नहीं तो इतने पैसों का घोटाले कहाँ से होते?
विकास का तो ये हाल है कि, एक ओर दिखावे की आधुनिकता का विकास हुआ है, तो दूसरी ओर जातियों के नाम पर अत्याचारों का भी खूब विकास हो रहा है। यहाँ तक कि देश के पीएम को, दलितों पर अत्याचार ना करने के लिए, भरी सभा में रोना पड़ रहा है। एक तरफ राष्ट्रवाद का खूब विकास हो रहा है, तो दूसरी ओर सांप्रदायिकता का भी खूब विकास हुआ है। अब इतने विकास की बात हो और सबके चहेते किसानों की बात ना हो एसा कैसे हो सकता है? जिसकी चिंता में नेता, टीवी चैनल दिन-रात दुबले हुये रहते हैं, और इनकी चिंता कर-करके, दिन-रात अपना विकास कर रहे हैं। तो जी, किसानों की आत्महत्या की संख्या में, दिन दूना रात चौगुना विकास हो रहा है। खूब विकास हो रहा है। डीजल-पेट्रोल-गैस-दारू पर टैक्सों का खूब विकास हो रहा है। बेरोजगारी और नौकरियां जाने का विकास हो रहा है। स्कूलों की फीस के साथ स्कूलों के मालिकों का विकास हो रहा है। दिन रात जनता के मुद्दों से भटकाते, न्यूज चैनलों, अखबारों के मालिकों का विकास हो रहा है। इनकी बकवास बहसों का विकास हो रहा है, जिसमें लाइव दी जाने वाली गालियों का विकास हो रहा है। इतना विकास कि बिना घुसे ही चीनी बाहर कर दिये जाते हैं, और बिना लड़ाई किये ही हम जीत जाते हैं। सबसे ज्यादा विकास तो जनता के मुद्दे उठाने पर माँ-बहन एक करने वाले दिहाड़ी-तिहाड़ी ट्रोलों का हो रहा है। इसीलिए कहा है कि, ‘आया एसा दौर है, अब विकास चहुं ओर। कोई नेता वेश है, कोई कातिल, चोर...’।