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मनोज जानी

बोलो वही, जो हो सही ! दिल की बात, ना रहे अनकही !!

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... और रावण जल गया।

मुझे सबसे ज्यादा डर धार्मिक लोगों से लगता है। सभी धार्मिक लोगों से नहीं , बल्कि जो किसी श्री श्री . . . पूजा समिति का सदस्य हो। पूजा समिति के लोगों से मुझे उतना ही डर लगता है, जितना कि कांग्रेस को अन्ना हज़ारे से। भाजपा को किए गए चुनावी वादों से। अकबर को मी टू अभियान से। जनता को चुनाव से। देश को देश सेवकों से। लेकिन मजबूरी ये है कि कोई भी इससे बच भी नहीं सकते। पूजा समिति के लोगों से डरने का कारण यह है कि ये लोग जेब पर सीधे आक्रमण करते हैं। आप को जबरदस्ती, भगवान का भक्त बनाने को आतुर रहते हैं, वो भी सिर्फ चंदा लेने तक।

      दशहरा, दुर्गा पूजा के महीने में बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। किसी भी तरफ़ निकलें,  कोई ना कोई टोली/ पूजा समित,  पूजा पंडाल के लिये चन्दा मांगती मिल जाती है। मैं अभी तक यह नहीं समझ पाया कि ये लोग चन्दा मांगते हैं, कि वसूलते हैं। इनके हाव भाव और तन्दुरुस्ती देखकर, इनकी आक्रामकता देखकर किसी भी साधारण आदमी की क्या विसात जो इन भगवान के एजेण्टों को मना कर सके।

      इसलिये मेरी कोशिश यही रहती है कि इस महीने में बाहर कम से कम निकला जाये। लेकिन यहां तो घर में रहना भी मुश्किल हो गया है। हमारी कालोनी में भी नयी नयी, श्री श्री फलां... पूजा समिति बन गयी। और पहुंच गयी घर घर हजार- दो हजार रूपये वसूलने। जैसे बकरा चुपचाप हलाल हो जाता है, वैसे ही अपने कालोनी वासी साथियों के सामने, अगर कोई चुपचाप हलाल नहीं होता, तो उसे अत्यंत ही नास्तिक और असामाजिक  होने का तमगा झेलना पड़ता है।

      आखिर हमारी कालोनी में भी बुराई पर अच्छाई की विजय करनी थी। इसलिए जो जितना अधिक चन्दा दे, वह उतना ही बड़ा धार्मिक होता है। वैसे भी लोगों का मानना है कि जो जितना ऊपरी कमाई करता है, वह उतना ही ऊपरवाले से डरता है। खुद ऊपरी कमाकर, ऊपर वाले को हिस्सा समझकर, हजारों लाखों का चन्दा ना दिया जाय, ये भी तो ठीक नहीं है। मेरे जैसे सामाजिक किस्म के प्राणी को चन्दा न देते देख मेरे बच्चे बड़े आश्चर्य में पड़ गये। सबके जाते ही बच्चे मुझ पर पिल पड़े।

चन्दा न देने के कारणों पर सवालात दागने लगे। बोले- सारी कालोनी ने चंदा दिया है। आपने क्यों नहीं दिया? मैंने उन्हे टरकाने के लिये यूं ही बोल दिया कि- चन्दे से हर साल रावण दहन करके, बुराई पर अच्छाई की विजय प्राप्तकरते हैं। जब एक बार बुराई को जलाकर ख़त्म कर देते हैं तो फिर अगले साल चंदा माँगने क्यों आ जाते हैं। जो मानते होंगे उनके लिए सारी बुराई ख़त्म होती होगी। मुझे तो दिखता नहीं। बच्चों के मन में यह बात बैठ गयी।

      अगले दिन हमारे पड़ोसी वर्मा जी मेरे घर आये, जो कि काफ़ी दिनों से अपनी लड़की के लिये वर ढूंढ रहे थे। मैंने पूंछा- क्यों वर्मा जी कोई लड़का मिला कि नहीं? वर्मा जी फ़ट पड़े। बोले कहां भाई। दूल्हों का भाव इतना हो गया है कि खरीदना ही मुश्किल हो गया है। डाक्टर-इंजीनियर, आठ दस लाख, आईएएस -पीसीएस, दस पन्द्रह लाख, यहां तक कि टीचर वगैरह भी पांच लाख के ऊपर हैं। भई बहुत बुरा जमाना आ गया है। मेरी तो हिम्मत जबाब देने लगी है। तभी मेरा छोटा बच्चा जो हमारी बातें सुन रहा था, तपाक से बोला- अंकल जी अब रावण जलने वाला है। उसके बाद सारी बुराई खतम हो जायेगी। उसकी बातें सुनकर हम सभी लोग चुप हो गए।

      दूसरे दिन हम लोग घर में टीवी पर समाचार देख रहे थे। टीवी पर सरकारी अधिकारी को घूस और कमीशन लेते रंगे हाथ दिखा रहा था। मैने दूसरा चैनल बदला तो नेताओं द्वारा दंगे भड़काकर सैकडों की जान जाने का ब्रेकिंग न्यूज दिखा रहा था। उस चैनल को भी बदल दिया। तीसरे चैनल पर सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में एक महिला के साथ बलात्कार का समाचार चल रहा था। मैंने टीवी बन्द कर दी। सिर पकड़कर बोला- हे भगवान, सब तरफ़ अन्याय ही अन्याय, अत्याचार ही अत्याचार है। इस देश का क्या होगा? तभी मेरे बेटे ने कहा- क्यों पापा, आप भूल गये कि रावण अब जलने वाला है, और सब ठीक हो जायेगा।

      आखिर रावण के जलने वाला दिन भी आ गया। बच्चे बड़े जोश से रावण दहन देखने गये। मैदान में तीन बड़े-बड़े पुतले लगे थे। दो बच्चों को राम और लक्ष्मण बनाया गया था। मेरे बच्चों ने मुझसे पूंछा- पापा रावण इतना बड़ा और राम इतने छोटे क्यों हैं। मैंने कहा- बेटे यह तो केवल प्रतीक हैं अच्छाई और बुराई के। उन्होंने फि़र पूंछा- तो क्या बुराई बहुत बड़ी होती है और अच्छाई छोटी सी। मेरे कुछ कहने से पहले ही आतिशबाजी शुरू हो गयी और बच्चे उसे देखने में मगन हो गये।

       अन्त में रावण को जलाया गया। जलते हुये रावण मे से होती हुई आतिशबाजी से बच्चे खूब खुश हो रहे थे। अन्त में हम लोग रावण दहन कर के घर वापस आ रहे थे कि एकाएक बच्चों ने फि़र पूछा- पापा अब तो सारी बुराइयां खतम हो गयी ना! अब तो वर्मा अंकल को दीदी के लिये दहेज नहीं देना होगा, अब कोई घूस और कमीशन भी नहीं लेगा। अब कोई किसी औरत की बेइज्जती भी नहीं करेगा! है ना पापा? आखिर रावण तो जल गया लेकिन मुझे इन जलते हुये प्रश्नों से जूझने के लिये छोड गया।

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Comment

आपकी राय

Very nice 👍👍

Kya baat hai manoj Ji very nice mind blogging
Keep your moral always up

बहुत सुंदर है अभिव्यक्ति और कटाक्ष

अति सुंदर

व्यंग के माध्यम से बेहतरीन विश्लेषण!

Amazing article 👌👌

व्यंग का अभिप्राय बहुत ही मारक है। पढ़कर अनेक संदर्भ एक एक कर खुलने लगते हैं। बधाई जानी साहब....

Excellent analogy of the current state of affairs

#सत्यात्मक व #सत्यसार दर्शन

एकदम कटु सत्य लिखा है सर।

अति उत्तम🙏🙏

शानदार एवं सटीक

Niraj

अति उत्तम जानी जी।
बहुत ही सुंदर रचना रची आपने।

अति उत्तम रचना।🙏🙏

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आईने के सामने (काव्य संग्रह) का विमोचन 2014

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चिकोटी (ब्यंग्य संग्रह) का विमोचन 2012

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